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  • Shubha Khadke

मरुधरा में जैविक खेती की ओर बढ़ते महिलाओं के कदम

खेती में महिलाओं का योगदान सर्वविदित है, खेत की तैयारी, बुवाई, निंदाई, गुड़ाई से लेकर फसल कटाई और सफाई तक सभी में महिलाओं की भागीदारी होती है। राजस्थान के सन्दर्भ में बात की जाये तो यहाँ महिला किसानों द्वारा अपनी समस्याओं का समाधान खोजने के लिए कृषि के नए और रचनात्मक तरीकों को अपनाया जा रहा है। वे जैविक खेती की ओर भी कदम बढ़ा रही है। राजस्थान में सीकर जिले के झीगरबाड़ी गांव की श्रीमती संतोष पचार को 2 बार राष्ट्रपति पुरुस्कार मिल चूका है। उनके गाजर के बीज के नए प्रयोग से गाजर का न सिर्फ उत्पादन बढ़ा है बल्कि वो अधिक मीठी हुई है। श्रीमती संतोष खेती में महिलाओं की भागीदारी का प्रतिनिधित्व करती है। इसी तरह राज्य के अन्य भागों में भी महिलाएं जैविक खेती के लिए प्रयासरत हैं ।


प्रस्तुत आलेख मुख्यतः दक्षिणी राजस्थान में पीडो संस्था के कार्यक्षेत्र डूंगरपुर और पश्चिमी राजस्थान में उन्नति संस्था के कार्यक्षेत्र बाड़मेर में जैविक खेती में महिलाओं की भागीदारी को साँझा कर रहा है ।


“जो हम नहीं खाते वे ग्राहकों को कैसे खिलाये” - लीलाबेन हूरजीभाई, डूंगरपुर


लीलाबेन जन शिक्षा एवं विकास संगठन (People’s Education and Development Organization - PEDO) की सदस्य है और संस्था से ही उन्होंने जैविक खेती के बारे में जाना।


PEDO एक स्वैच्छिक संगठन है,जो 1980 से गरीब समुदायों के साथ ग्रामीण विकास के क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्यरत है। संगठन मुख्य रूप से महिला सशक्तिकरण, सतत आजीविका को बढ़ावा देना,प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, स्वच्छता और स्वच्छ जल, लघु सिंचाई प्रबंधन, खेती विकास, पंचायती राज संस्थाओं का मजबूतीकरण आदि मुद्दों पर दक्षिणी राजस्थान में डूंगरपुर क्षेत्र में कार्यरत है। PEDO का महिला महासंघ मॉडल बहुत मजबूत है और उनका सभी महिलाओं के साथ अच्छा जुड़ाव है। उनके कार्यक्षेत्र में आत्मविश्वास से भरी महिलाओं और विकास पर उनके विचारों को जानने से स्पष्ट ज्ञात होता है कि संस्था का समुदाय से गहरा जुड़ाव है ।


इसी महासंघ से जुडी है लीलाबेन । वे डूंगरपुर से 18 किलोमीटर दूर रातापानी गांव में रहती हैं। उनके पास कुल 5 बीघा ज़मीन है जिसमे 1-1.5 बीघा ज़मीन में वे सब्जियां उगाती है, बाकि में वे घर के लिए अनाज उगाती है. पहले वे रासायनिक खाद और दवाओं का उपयोग करती थी परन्तु संस्था ने जब रासायनिक दवाओं से स्वास्थ्य को होने वाले खतरें के बारे में बताया तो उन्होंने जैविक सब्जियां उगाना शुरू किया। वह संस्था के मार्गदर्शन में पिछले 5-6 वर्षों से जैविक सब्जियां उगा रही है। वे पौध नर्सरी खुद तैयार करती है और बीज उपचार से लेकर सब्जियों की तुड़ाई तक समय समय पर जीवामृत , जैविक खाद , ब्रम्हास्त्र आदि जैविक दवाओं और खाद का उपयोग करती है। लीलाबेन बुवाई के समय से थोड़ा पहले ही सब्जियों की बुवाई कर देती है । जिससे मार्केट में सब्जियां आने के पहले इनकी सब्जियां आ जाती है , और अच्छा भाव मिल जाता है।



मुख्य बात यह है कि उनके पति प्रतिदिन सुबह डूंगरपुर की 4 से 5 कॉलोनियों में बंधे हुए ग्राहकों के घर सब्जियों की होम डिलीवरी करते है। हर शाम को लीला

बेन सब्जियाँ तोड़ कर रखती है और उनके पति सुबह 6 से दोपहर 2 बजे सब्जियाँ देने जाते है। प्रतिदिन लगभग 2000 रूपये की सब्जियां बेचते है उसमे 200 रूपये तो पेट्रोल के लिए खर्च हो जाते है। वे और उनके पति बेहतर योजना के साथ सब्जियाँ लगाते है जिससे ग्राहकों को पूरे वर्ष सभी मौसमी सब्जियां मिलती रहती है।


लीलाबेन ने सब्जियों के अपने व्यवसाय के बलबूते पर अपने एक बेटे को वेटरनरी डॉक्टर बनाया है, दूसरा एग्रीकल्चर में M.Sc कर रहा है और बिटिया B.Sc, बी.एड कर चुकी है। लीलाबेन कहती है कि जैविक खेती में मेहनत ज़्यादा है पर जब बात स्वास्थ्य की होती है तो उसके साथ समझौता नहीं किया जा सकता। लीलाबेन से चर्चा करना बेहद उत्साहपूर्ण था।


पीडो ने जब काम शुरू किया था तब इस क्षेत्र में लोग बीटी कॉटन लेते थे, परन्तु इसमें खर्चा अधिक था और जमीन की उर्वरकता भी धीरे धीरे कम हो रही थी इसलिए संस्था ने लोगो को हल्दी लगाने के लिए प्रेरित किया। संस्था ने अपने परिसर में जैविक हल्दी प्रसंस्करण यूनिट "माही" को शुरू किया, आज लगभग 1500-1600 महिलाएं इस यूनिट से जुडी हुई है। ये पूरी तरह जैविक पद्धति से हल्दी उगाती है।संस्था बाजार भाव से महिलाओं को 5 रुपया प्रति किलो ज्यादा भाव देकर हल्दी खरीदती है । प्रति वर्ष लगभग 10 से 15 टन हल्दी खरीदी जाती है फिर उसको प्रोसेस कर माही ब्रांड के साथ रिटेल में बेचा जाता है।


गत कुछ वर्षों से संस्था निरंतर प्रयास कर रही है कि महिलाएं जैविक खेती की दिशा में आगे बढ़े। इसमें महिला संघ की महत्वपूर्ण भूमिका है। लीलाबेन की तरह लगभग 10000 से अधिक महिलाएं संस्था से जुडी है।

"हम बिना ज़हरकीखेतीकरतेहै "- हीरादेवी, बाड़मेर


रेतीलापश्चिमी राजस्थान ढाणियों में बसा हुआहै। ऐसी ही एकढाणी कबीरनगर में रहनेवाली हीरादेवीगत एक वर्ष सेजैविक पद्धति से सब्जियाँ ऊगारही है। वेउन्नति संस्था द्वारा २०१७ में गठितजय भीम महिला किसानसंगठन (JBMKS) की सदस्य हैं।उन्नति एक स्वैच्छिक संगठनहै जो स्वास्थ्य, शिक्षा, आजीविका, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन , सुशासन , महिला सशक्तिकरण आदि मुद्दों परकार्य कर रहे है।


जयभीम महिला किसान संगठन (JBMKS) में पाटोदी संकुलके 25 गाँवों की 700 और सिंदरी संकुलके 25 गाँवों की 700 महिलाएँ सदस्य हैं। सभी अनुसूचितजाति और जनजाति कीमहिलाएं हैं। इस संगठनका उद्देश्य महिला किसानों को पहचान देनाऔर महिलाओं को सरकारी योजनाओंका लाभ पहुंचाने मेंसहायता करना है. संगठनने उन्हें उन्नत कृषि पद्धतियों केलिए भी सहयोग दियाहै । संस्था नेअनुदान सहायता के साथ संगठनको ट्रैक्टर, ट्रॉली, पानी के टैंकरऔर छोटे कृषि उपकरणप्रदान किए। संगठन केसदस्यों ने कुछ दरेंतय कीं और इननिश्चित दरों पर येउपकरण सदस्यों को किराये परउपलब्ध कराये जाते है। इससे महिलाओं को जैविक खेतीमें सहयोग मिल रहा है।


माल्टेसर इंटरनेशनल और जीआईजेड (GIZ) पाटोदीके 25 गांवों और सिंदरी के 25 गांवों में भोजन औरपोषण के लिए उन्नतिसंस्था को सहयोग प्रदानकर रहे हैं। इनगांवों में उन्नति जैविकखेती पर काम कररही है। "बागवानीविकास और सब्जी कीखेती" परियोजना के तहत उन्होंने 132*132 फीट में महिलाओं को 70 पौधे प्रदान किए। 70 पौधों में 42 पौधे बेर, 4 सुरजना , 21 गुंदा और 3 खेजड़ी हैं। 3-5 साल के अंदर सभीपौधे फल देने लगेंगे।बीच-बीच में महिलाएंमौसमी सब्जियां ले रही है। यह सूखा क्षेत्रहै इसलिए पोषण सुरक्षा औरफल बेचकर अतिरिक्त आय के लिएसंस्था इसपरियोजना को लागू कररही है।

इस परियोजना कीलाभार्थी हीरा देवी नेबताया कि उसके पास 5 बीघा रेतीली जमीन है इसलिएवर्षा आधारित कृषि ही एकमात्रसंभव विकल्प है। वे आमतौरपर केवल अपने उपभोगके लिए बाजरा, मूंग, मोठ और ग्वार उगातेहैं। बिक्री के लिए कोईअधिशेष नहीं होता है।जय भीम महिला किसानसंगठन की बैठकोंके दौरान उन्होंने जैविक खेती मतलब "बिनाजहर की खेती" केबारे में जाना। अगस्त 2021 में संस्था ने उन्हें 70 पौधेउपलब्ध कराए। संस्था की टीम केमार्गदर्शन में वह मौसमीसब्जियां उगा रही है।वह बीज उपचार, बीजामृत, जीवामृत और अन्य जैविकखाद के बारे मेंबता रही थीं। पहलेउनको सब्जियां खरीदनी पड़ती थी लेकिनपिछले एक साल सेउन्हें ताजी सब्जियां मिलरही हैं जिसे उन्होंनेअपने पड़ोसियों में भी बाँटाहै । उन्होंने भिंडी, ग्वार, बैंगन, पालक, टमाटर आदि उगाए हैं।


इसीसंगठन की सदस्य श्रीमतीममता देवी हेमाराम नेजैविक खेती के अपनेअनुभव साझा किए। उन्होंनेबताया कि उनकी 4 बीघाजमीन में 3 बीघे में बाजराऔर 1 बीघा में मोठउगाया था । पहलेवे एक बीघा जमीनमें वह केवल 10 किलोमोठ लेती थी लेकिनइस साल उसे 50 किलोमोठ मिला। उन्होंने नियमित रूप से खादऔर जीवामृत का ही उपयोगकिया और वे बिनाजहर की खेती केअपने प्रयोग से काफी खुशहै।


रेनफेडक्षेत्र में भी उत्पादनबढ़ाने के लिए रासायनिकखाद का प्रयोग कियाजाता है ऐसे मेंजैविक खेती के लिएबढ़ती जागरूकता और महिलाओं द्वाराकिये गए प्रयास निश्चितही उल्लेखनीय है।

राजस्थान में जैविक खेती का परिदृश्य


राजस्थान में जैविक खेती की नीति तो 2017 से है। वित्तीय वर्ष 2019-20 में "खेती में जान तो सशक्त किसान" योजना के माध्यम से प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की बात कही गई थी। पायलट प्रोजेक्ट के रूप में यह योजना राज्य के तीन जिलों टोंक, सिरोही और बांसवाड़ा में शुरू की गई थी परन्तु वर्ष 2020-21 में 15 जिलों तक बढ़ाई गई।


इस योजना में किसानों को उपकरणों पर अनुदान दिया जाता है। साथ ही प्राकृतिक खेती में रुचि रखने वाले किसानों को रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से होने वाले नुकसान के साथ-साथ प्राकृतिक खेती के लाभों के बारे में जानकारी प्रदान की जा रही है। कम लागत वाली खेती की तकनीक और जीवामृत, बीजामृत, घनामृत आदि का उपयोग भी सिखाया जा रहा है।


यदि इस योजना में महिला किसानों को वरीयता दी जाय तो निश्चित ही इसका फैलाव तेजी से होगा। चर्चा के दौरान ये स्पष्ट प्रतीत हुआ की महिलायें अपने परिवार के स्वास्थ्य को लेकर जागरूक होती जा रही है अतः खेती में जैविक पद्धतियों को अपनाने में उनका रुझान भी अधिक है। स्वैच्छिक संस्थाओं द्वारा बनाये गए महिला संगठन सशक्त रूप से आजीविका और महिला मुद्दों पर कार्य कर रहे है ऐसे में उनके माध्यम से महिलाओं में जैविक खेती की अलख जगाना आसान है। उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में महिलाएं ही जैविक खेती की मशाल आगे ले जायेंगी।


 

शुभा खड़के लिविंग फार्म इनकम प्रोजेक्ट, इरमा (IRMA) में प्रोग्राम और आउटरीच कन्सल्टन्ट हैं।


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